फकीर मोहन की अमर कहानी ‘रंडीपुआ अनंता’ से एक शब्द हटाने पर बालेश्वर में विरोध प्रदर्शन

बालेश्वर, 24 मई (कृष्ण कुमार मोहंती):
फकीर मोहन सेनापति की प्रसिद्ध कहानी ‘रंडीपुआ अनंता’ पर आधारित एक हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म को लेकर बालेश्वर में विवाद गहराता जा रहा है। विवाद की जड़ में है फ़िल्म के निर्माता द्वारा मूल शीर्षक से ‘रंडीपुआ’ शब्द को हटाकर केवल ‘अनंता’ रख देना, जिससे ओड़िशा के साहित्यिक हलकों में तीव्र असंतोष पैदा हो गया है।
‘रंडीपुआ’—जो 19वीं सदी में लिखी गई इस कहानी के शीर्षक का अहम हिस्सा रहा है—को हटाना, साहित्यिक पहचान से छेड़छाड़ के रूप में देखा जा रहा है। फकीर मोहन की जन्मभूमि बालेश्वर से उठी इस आपत्ति ने पूरे राज्य में बहस को जन्म दिया है, जहाँ लोग इस परिवर्तन को ओड़िया भाषा और साहित्य के एक पुरोधा के प्रति अनादर मान रहे हैं।
इस कहानी को कभी महान गायक अक्षय मोहंती द्वारा गाए एक गीत के ज़रिए लोकप्रियता मिली थी, जिसने फकीर मोहन की साहित्यिक आत्मा को जन-जन तक पहुँचाया। लेकिन आज की इस फ़िल्मी प्रस्तुति को साहित्यिक भावनाओं की एक तरह की व्यापारिक दुर्बलता माना जा रहा है।
डॉ. राधारंजन पटनायक, डॉ. बंसीधर चौधरी, कवि अभय दास, समरेन्द्रनाथ महापात्र, कृष्ण कुमार मोहंती, डॉ. संतोष नायक, डॉ. अंतर्यामी पांडा, कवि पूर्णचंद्र पांडा और डॉ. अभिमन्यु कानुनगो सहित कई प्रमुख साहित्यकारों ने इस कृत्य पर गंभीर आपत्ति जताई है। उनका मानना है कि यह फकीर मोहन की साहित्यिक विरासत और ओड़िया संस्कृति की पहचान के प्रति सीधा अपमान है।
सूत्रों के अनुसार, यह फ़िल्म न तो टेलीफ़िल्म है, न ही प्रत्यक्ष रूपांतरण; बल्कि यह एक फीचर फ़िल्म है जिसका नाम ‘अनंता’ रखा गया है, जिसका निर्देशन सब्यसाची महापात्र ने किया है और यह ‘रंडीपुआ अनंता’ से प्रेरित बताई जा रही है। यदि यह केवल एक प्रेरित काल्पनिक कथा है, तो विरोध की तीव्रता कम हो सकती है। लेकिन यदि यह मूल कहानी का ईमानदार रूपांतरण है जिसे नया नाम दे दिया गया है, तो यह साहित्यिक विरासत के प्रतीकात्मक अपमान के रूप में देखा जा रहा है।
फ़िल्म का प्रीमियर आज दोपहर हुआ, ऐसी जानकारी प्राप्त हुई है।