शैलबाला महापात्र की तीन कविताएँ

शैलबाला महापात्र ओडिशा की एक सुपरिचित कवयित्री हैं. पचास साल की साहित्य यात्रा के दौरान ओड़िआ में उनके छह कविता संकलन, दो निबंध संकलन तथा बच्चों के लिए पचास से अधिक अनूदित पुस्तक ही नहीं बल्कि बच्चों के लिए अंग्रेजी में चार तथा हिंदी में दो पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं. अपनी मौलिक कृतियों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित कवयित्री प्रधान शिक्षक पद से सेवा निवृत्ति के बाद ओडिशा के पुरी में रहती हैं.
संपर्क : 99372 47442
दीवार
कितने मन धूप को
उसने दिखा दी है
अपनी रूखी पीठ।
कितनी झमाझम बारिश को
उफ किये बिना संभाली है
उसकी हड़ियाई छाति।
ओस की कितनी बूँदों से
नरम हो गये हैं
उसके झुके हुए कंधे।
कोई सटीक हिसाब नहीं इन सबका
अब तो खुद को तब्दील करना पड़ेगा
एक दीवार में।
पर दीवार बनना भी
इतना आसान तो नहीं !
नाटक जब ख़त्म होने को हो
नाटक जब ख़त्म होने को हो
थोड़ा रुकना
सभी की आँखों से दूर
या सभी के सामने
कोई फर्क नहीं पड़ता
लेकिन रुकना
अंतिम दृश्य तक।
अंतिम दृश्य में
एक हाथ बढ़ रहा होगा
मेरी ओर और मैं
मंच से ओझल होती जाऊँगी
मंच के नीचे
अहा... अहा...
उफ़ ... उफ़ ...
कुछ आँसू
कुछ मुस्कान
कुछ फिजूल के शब्द
और दर्शकों की शोरगुल।
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वह हाथ तुम्हारा तो नहीं
जो छू न सका नाटक ख़त्म होने तक ?
जहाँ निंदाएँ, प्रशंसाएँ
खड़ी होंगी सर झुकाए
वहीँ पर तुम जरा ठहर जाना
समूचे नाटक का सुख दुःख
अच्छाई बुराई, हँसी और रुलाई
चढ़ने की चतुराई
गिर पड़ने की जगहँसाई
सभी की गठरी बना कर
तुम्हारी ओर बढ़ा देने के बहाने
तुम्हें जरा छू तो लूँगी
सारे नाटक में तुम जो
रह गए नेपथ्य में।
छोटी छोटी बातों में ईश्वर
बस्ता उठाए बच्चा
बस्ती से भागा आ रहा था
मुझे देख फिक से मुस्कुरा दिया
एक साफ़ सुथरी मुस्कान
अहो, मानो फिसल आया हो
एक कदम्ब उसके होठों से।
गई थी गाँव
मिला चरवाहा का बेटा
मधू
गायों का झुण्ड लिए
लौट रहा था घर
देखते ही बोला : दिदी नमस्ते
कब आई ?
ऐसी निर्मल बोल
जैसे बांसुरी की धुन आ रही हो
पेड़ की झुरमुटों से।
घर की ओर लौट रही थी
झुकी हुई चाल की झोपडी देख
ठहर गई, पूछा - थोड़ा पानी ...
पल भर में देहातन महिला ने
बढ़ा दिया लोटा भर पानी
पीकर निकलते ही कहा
"इस धूप में जाओगी कैसे ?
थोड़ी देर के लिए बैठ क्यों नहीं जाती !"
मानो यमुना बह रही थी
वहीँ कहीं आसपास।
इतनी छोटी छोटी बातों में भी
ईश्वर होते हैं
पहले कभी पता नहीं था।
???? ओड़िआ से अनुवाद : राधू मिश्र
संपर्क : 9178 549 549