तीन दिवसीय पंचम पूर्वी भारत ओरिएंटल सम्मेलन का समापन फकीर मोहन विश्वविद्यालय में
* विद्वानों ने पैप्पलाद परंपरा और भारतीय ज्ञान प्रणाली में संस्कृत की भूमिका को रेखांकित किया

बालेश्वर | 28 मई 2025 (कृष्ण कुमार मोहंती)
फकीर मोहन विश्वविद्यालय, बालेश्वर में तीन दिवसीय पूर्वी भारत ओरिएंटल सम्मेलन (EIOC) का पंचम संस्करण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यह आयोजन नई दिल्ली स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित किया गया था, जिसमें पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के 200 से अधिक विद्वान और शोधार्थी शामिल हुए। इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत की प्राचीन ज्ञान परंपराओं और बौद्धिक विरासत पर गंभीर विमर्श करना था।
हर दो वर्षों में आयोजित होने वाला यह सम्मेलन वैदिक और संस्कृत साहित्य, भारतीय दर्शन, व्याकरण, धर्म, इतिहास, पुरातत्त्व और देशज साहित्यिक परंपराओं जैसे विषयों पर चर्चा के लिए एक प्रतिष्ठित मंच बन चुका है। इस वर्ष सम्मेलन में विशेष रूप से अथर्ववेद की ओडिशा में संरक्षित पैप्पलाद परंपरा तथा श्रीधर स्वामी और बलदेव विद्याभूषण द्वारा प्रतिपादित ज्ञान-भक्ति दर्शन पर केंद्रित चर्चा हुई। ये दोनों महत्त्वपूर्ण वैष्णव विचारक बालेश्वर क्षेत्र से संबंधित हैं।
साथ ही सम्मेलन में फकीर मोहन सेनापति की साहित्यिक विरासत को भी सम्मानपूर्वक स्मरण किया गया, जिन्होंने आधुनिक ओड़िया भाषा और गद्य साहित्य को आकार देने में अग्रणी भूमिका निभाई थी।
इस अवसर पर आयुर्वेद, भाषाविज्ञान, नाट्यशास्त्र और साहित्यालोचना जैसे विविध विषयों पर 50 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। समग्र रूप से यह सम्मेलन भारतीय पारंपरिक ज्ञान परंपराओं की समकालीन प्रासंगिकता को रेखांकित करता रहा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) को शिक्षा में शामिल करने पर बल दिया गया।
सम्मेलन का उद्घाटन फकीर मोहन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संतोष कुमार त्रिपाठी ने किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने भारतीय ज्ञान प्रणाली में संस्कृत की केंद्रीय भूमिका पर प्रकाश डाला। ईआईओसी के अध्यक्ष प्रो. पी. के. मिश्रा ने पश्चिमी अकादमिक दृष्टिकोण द्वारा भारतीय ज्ञान परंपराओं की उपेक्षा का उल्लेख करते हुए इन परंपराओं को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता जताई। राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति के पूर्व कुलपति प्रो. हरेकृष्ण सतपथी ने उद्घाटन व्याख्यान में कहा कि "भारत" की पहचान संस्कृत से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि सांसद श्री प्रताप चंद्र सारंगी थे। उन्होंने अपने संबोधन में संस्कृत, वेद और उनके वैज्ञानिक व दार्शनिक महत्व की वर्तमान युग में प्रासंगिकता को रेखांकित किया। इस सत्र में प्रो. हरेकृष्ण मिश्र ने समन्वयक की भूमिका निभाई, जबकि डॉ. निवेदिता पाटी ईआईओसी की प्रकाशन सचिव रहीं। प्रो. ब्रज किशोर स्वैन (उपाध्यक्ष, ईआईओसी), प्रो. प्रफुल्ल कुमार मिश्र (ईआईओसी अध्यक्ष) ने भी सभा को संबोधित किया। डॉ. देवाशीष मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
सम्मेलन के दौरान कई महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए, जिनमें संस्कृत को भारतीय ज्ञान प्रणाली की आधारशिला मानते हुए उसे औपचारिक रूप से पाठ्यक्रम में शामिल करने की अनुशंसा की गई। प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित शिक्षा लागू करने हेतु केंद्र एवं राज्य सरकारों से नीति निर्माण की मांग की गई।
ओडिशा की वैदिक पहचान को सहेजने हेतु पैप्पलाद संहिता का संपादन, अनुवाद और प्रकाशन तथा श्रीधर स्वामी और बलदेव विद्याभूषण के ग्रंथों का शैक्षणिक पुनर्पाठ करने पर बल दिया गया।
ईआईओसी ने भारत सरकार से दो विशेष अकादमिक पहल की मांग की:
फकीर मोहन विश्वविद्यालय में श्रीधर स्वामी एवं बलदेव विद्याभूषण पीठ की स्थापना
माहराजा श्रीराम चंद्र भांजा देव विश्वविद्यालय, बारीपदा में पैप्पलाद परंपरा पीठ की स्थापना
इस प्रकार विद्वानों और शोधार्थियों के समर्पित विचार-विमर्श के साथ यह सम्मेलन संपन्न हुआ, जिसमें भारत की प्राचीन बौद्धिक और आध्यात्मिक परंपरा को युवा पीढ़ी से जोड़ने और इसे भविष्य के लिए पुनः प्रासंगिक बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई गई।