‘श्रीराम साहित्य’ जीवनवाद की एक अद्भुत चित्रशाला है — अतिथि का कथन

* साहित्यकार डॉ॰ राधारंजन पटनायक की पुस्तक ‘श्रीराम साहित्य और सांस्कृतिक अस्मिता’ का लोकार्पण सम्पन्न

Jun 9, 2025 - 05:33
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‘श्रीराम साहित्य’ जीवनवाद की एक अद्भुत चित्रशाला है — अतिथि का कथन

बालेश्वर, 8 जून (कृष्ण कुमार महान्ति):
ओडिशा की प्रमुख प्रकाशन संस्था विद्याभारती द्वारा प्रकाशित साहित्यकार डॉ॰ राधारंजन पटनायक द्वारा रचित विचारप्रधान पुस्तक ‘श्रीराम साहित्य और सांस्कृतिक अस्मिता’ का लोकार्पण समारोह कवि अभय दास की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम की शुरुआत भगवान जगन्नाथ के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर एवं दीप प्रज्वलन के साथ की गई, जिसके उपरांत पुस्तक का औपचारिक विमोचन किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप में 'रेबती' पत्रिका की संपादिका एवं विधायिका सुभासिनी जेना ने कहा, “राम साहित्य जैसा प्राचीन साहित्य आज के रचनाकारों को प्रेरणा देता है। कभी-कभी यह साहित्य समाज को नीति-नैतिकता और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' का संदेश भी देता है।”

बालेश्वर के अपर जिलाधिकारी सुधाकर नायक ने अपने विचार रखते हुए कहा कि राम साहित्य न केवल भारतीयों के लिए एक आदर्श जीवन-दर्शन प्रस्तुत करता है, बल्कि संपूर्ण विश्व को एक सूत्र में बाँधने का भावनात्मक आधार भी प्रदान करता है।

भाषा-विशेषज्ञ प्रफुल्ल पात्र ने कहा कि “आज के समय में जब समाज हस्तिनापुर की तरह संकट में है, ऐसे में श्रीराम साहित्य हमें नई दिशा दिखाने की क्षमता रखता है।”

प्रख्यात विद्वान एवं प्राध्यापक डॉ॰ बब्रुवाहन महापात्र ने कहा, “राम साहित्य केवल कल्पना नहीं, बल्कि इतिहास का कायाकल्प है। रामकालीन अस्त्रों की तुलना आज के आधुनिक हथियारों से की जा सकती है।” उन्होंने यह भी कहा कि राम कथा में विश्व के पहले अंतरिक्ष यात्री का उल्लेख मिलता है, और डॉ॰ पटनायक की इस पुस्तक ने इन गूढ़ पक्षों को भलीभाँति उजागर किया है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में ‘समाज’ उत्तर ओडिशा संस्करण के वरिष्ठ सह-संपादक एवं स्तंभकार कुलमणि बारिक ने वैश्विक साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में राम साहित्य की यथार्थता और दार्शनिक दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज की पीढ़ी को अस्मिता के विषय में गौरव और आत्मसम्मान से सोचने की आवश्यकता है।

सभा की अध्यक्षता करते हुए कवि अभय दास ने कहा कि ओड़िया अस्मिता और पुरातन साहित्य 21वीं सदी के लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। उन्होंने कहा कि आज के कवि प्राचीन चरित्रों और समकालीन जीवन को मिलाकर सुंदर मिथक, रूपक और प्रतीकों की रचना कर पा रहे हैं।

इसके पश्चात लेखक डॉ॰ राधारंजन पटनायक ने अपनी साहित्यिक अभिव्यक्ति में राम साहित्य को एक मानवीय संवेदना की विचित्र चित्रशाला बताते हुए सांस्कृतिक अस्मिता पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया।

कुमारी अदिति दास ने मंच पर सभी अतिथियों का पुष्पगुच्छ और बैज पहनाकर स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक डॉ॰ प्रदीप्त मिश्र ने किया। प्रारंभ में एडवोकेट विजय पाणिग्राही ने जगन्नाथ वंदना प्रस्तुत की और विद्याधर नायक व मंजुलता बल ने सहयोग प्रदान किया।

अंत में प्रख्यात शिक्षाविद् एवं कवि पूर्णचंद्र पंडा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

इस लोकार्पण समारोह में बालेश्वर के अनेक गणमान्य नागरिक, शिक्षाविद्, साहित्यकार, बुद्धिजीवी एवं समाजसेवी उपस्थित थे।