गाँव का श्मशान बना जनसैलाब : अपने ही गाँव के श्मशान में पूरे हुए अंतिम संस्कार
बालेश्वर की माटी के सपूत प्रशांत के लिए हर आँख में आँसू : ईषाणी गाँव में शोक का माहौल

बालेश्वर, 24/4 (कृष्ण कुमार महान्ति): एक आतंकी हमले में 27 से अधिक पर्यटकों की जान चली गई। मृतकों में शामिल थे बालेश्वर जिले के सदर ब्लॉक अंतर्गत ईषाणी गाँव के निवासी प्रशांत सतपथी। यह खबर मिलते ही ईषाणी गाँव ग़मगीन हो गया। पूरे गाँव में शोक की लहर दौड़ गई। आज प्रशांत का पार्थिव शरीर गाँव पहुँचा। गाँव रो पड़ा। बच्चे, बूढ़े, महिलाएँ—सबकी आँखों में आँसू हैं। उनकी पत्नी और परिवार बेसुध हैं।
प्रशांत के मन में कई सपने थे—अब अधूरे रह गए। गाँव के शिव मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया। क्या गाँव का यह होनहार बेटा सचमुच सदा के लिए चला गया? आज आधा गाँव उपवास में है। जबसे यह खबर आई है, कई घरों में चूल्हे नहीं जले हैं। सब उसकी यादों में डूबे हैं। गाँव की गलियाँ सूनी हो गई हैं।
हर पर्व, हर आयोजन में आगे रहने वाला, गाँववालों के सुख-दुख में साझेदार प्रशांत की मौत को कोई स्वीकार नहीं कर पा रहा है। उसने कहा था कि चाहे जितना खर्च हो, वह अपने खर्चे पर गाँव के शिव मंदिर में शिवलिंग स्थापित करेगा। अब मंदिर कैसे बनेगा? कौन शिवलिंग लाकर स्थापित करेगा? 19 तारीख को जब वह कश्मीर जाने को निकला था, तब कहा था कि ऑफिस के स्टाफ के साथ जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर जा रहा है और जल्दी लौटेगा। लेकिन वह नहीं लौटा—लौटा तो उसका शव। पत्नी, जिसने पति की लाश देखी, अब तक विश्वास नहीं कर पा रही कि वह नहीं रहा। गाँव का कोई भी व्यक्ति यकीन नहीं कर पा रहा कि उनका प्यारा प्रशांत अब इस दुनिया में नहीं है।
कुछ दिनों में उसकी पत्नी की माँग से सिंदूर मिट जाएगा। हाथों से चूड़ियाँ और शंख उतर जाएँगे। बेटे के मुँह से "बाबा" की पुकार हमेशा के लिए खो जाएगी। आतंकियों की गोलियों ने प्रशांत को हमेशा के लिए उनसे छीन लिया। वह केवल अपने घर के लिए नहीं, बल्कि बेटनोटास स्थित ससुराल के लिए भी समर्पित था। वह सबकी मदद करता था।
"एक भाई साल भर पहले अलग घर बनाने की सोच रहा था," प्रशांत के बड़े भाई सिद्धांत ने नम आवाज़ में कहा। "प्रशांत ने कहा था—हम तीनों भाई एक साथ जन्मे हैं। हम एक ही परिवार हैं। बच्चे बड़े हो जाएँ तो अलग हो सकते हैं, पर हम तीनों एक साथ रहेंगे। परिवार को जोड़कर रखने का मंत्र वह सिखाता था। और आज वही भाई मुझसे हमेशा के लिए दूर चला गया!"
सरकार की ओर से पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार की सारी तैयारियाँ की गईं। आज उनके गाँव के श्मशान में अंतिम संस्कार पूर्ण हुआ। मुख्यमंत्री स्वयं बालेश्वर आकर अंतिम संस्कार कार्यक्रम में शामिल हुए। जिला प्रशासन की ओर से एक नोडल अधिकारी को नियुक्त किया गया, जिन्होंने राजकीय सम्मान के साथ क्रियाक्रम की निगरानी की।
आतंकी गोली से भले ही प्रशांत सतपथी ने अपने प्राण गंवा दिए हों, लेकिन उनकी यादें—गाँव से लेकर पूरे बालेश्वर ज़िले तक, यहाँ तक कि बामापाड़ा स्थित CIPET कार्यालय में भी—छा गई हैं। वहाँ का वातावरण भी शोकाकुल है। 2011 से वह वहाँ कार्यरत थे। उन्होंने कभी किसी सहकर्मी से विवाद नहीं किया, न ही किसी के साथ मतभेद रखा।