बालेश्वर के वैज्ञानिक को झींगा अपशिष्ट से पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद बनाने की तकनीक पर पेटेंट
बालेश्वर, 17/10 (कृष्ण कुमार महांती):
ओडिशा के एक वैज्ञानिक ने सतत नवाचार के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। राज्य के शोधकर्ता डॉ. सिद्धार्थ पति को झींगा (श्रिम्प) के अपशिष्ट से काइटोसान नामक जैव-अवक्रमणीय यौगिक निकालने की पर्यावरण-अनुकूल प्रक्रिया विकसित करने के लिए पेटेंट प्राप्त हुआ है। यह तकनीक समुद्री अपशिष्ट को मूल्यवान जैव उत्पादों में बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
डॉ. पति का स्टार्टअप सरकार की सर्कुलर इकोनॉमी और वेस्ट टू वेल्थ नीतियों के अनुरूप कार्य कर रहा है। इसका उद्देश्य समुद्री कचरे को औषधि, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिए उपयोगी कच्चे माल में परिवर्तित करना है। उन्होंने कहा, “जो कभी समुद्र या लैंडफिल में फेंक दिया जाता था और प्रदूषण का कारण बनता था, वही अब एक कीमती संसाधन बन गया है।”
इस पेटेंट तकनीक के माध्यम से झींगा के छिलकों से काइटिन, काइटोसान और बायो-स्टिमुलेंट्स जैसे बायोपॉलीमर तैयार किए जा सकते हैं। इनका उपयोग दवा की कैप्सूल परत, घाव उपचार, पुनर्जनन चिकित्सा, हड्डी प्रत्यारोपण, ऊतक संरचना, सौंदर्य प्रसाधन और जल शुद्धिकरण में किया जा सकता है।
डॉ. पति के अनुसार, काइटोसान अपनी जैव-सुरक्षा, अपघटनशीलता और बहुउपयोगिता के कारण विश्व स्तर पर ध्यान आकर्षित कर रहा है। यह उन्नत दवा वितरण, वैक्सीन परिवहन, बायोसेंसर और अन्य चिकित्सा तकनीकों का अहम घटक बन गया है।
डॉ. पति ने कहा कि यह पेटेंट किसी उपलब्धि का अंत नहीं बल्कि “नई श्रृंखला की शुरुआत” है। उनकी टीम समुद्री आधारित नई जैव तकनीकों पर कार्य कर रही है। “हमारा लक्ष्य भारत को सतत जैव उत्पादों और बायो-आधारित सामग्री का वैश्विक केंद्र बनाना है,” उन्होंने कहा।