भुवनेश्वर में आयोजित हुआ 38वां बसंत मुदुली स्मृति समारोह •वक्ताओं ने कहा—बसंत मुदुली मानवीय सत्य के कवि थे
बालेश्वर, 8/12 (कृष्ण कुमार महान्ति): प्रेम और विद्रोह के कवि बसंत मुदुली केवल जीवन्त ऊर्जा के स्वर ही नहीं थे, वे मानवीय संवेदना और जीवन-बोध के प्रखर कवि भी थे। उनकी कविताएँ सामाजिक विकृतियों को उजागर करती हैं और एक नए उजाले के स्वप्न को भी संजोती हैं। यह बात ओड़िया भाषा, साहित्य और संस्कृति मंत्री सूर्यवंशी सूरज ने कही। वे भुवनेश्वर स्थित बुद्ध मंदिर प्रेक्षागृह में आयोजित दिवसीय 38वें बसंत मुदुली स्मृति समारोह का उद्घाटन कर रहे थे। यह कार्यक्रम ओडिशा साहित्य अकादमी और बसंत मुदुली स्मृति संसद, भद्रक द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता स्मृति संसद के अध्यक्ष पबित्र पाणिग्राही ने की। विशिष्ट साहित्यकार डॉ. प्रफुल्ल कुमार महान्ति मुख्य अतिथि और कादंबिनी की संपादिका डॉ. इति सामंत विशिष्ट अतिथि थीं। दोनों ने कवि की बहुरंगी काव्यविश्व पर चर्चा की और कहा कि उनकी सामाजिक चेतना और यथार्थ दृष्टि उनकी कविताओं को सदा प्रासंगिक बनाती है।
ओडिशा साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. चंद्रशेखर होता ने स्वागत भाषण दिया। स्मृति संसद के सचिव कृष्ण कुमार महान्ति ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर युवा कवि अमरेन्द्र माधव दाश को इस वर्ष का बसंत मुदुली काव्य पुरस्कार प्रदान किया गया, जिसमें अंगवस्त्र, उपहार और नकद राशि शामिल थी।
समारोह में कई पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया। इनमें डॉ. ब्रजमोहन मिश्र द्वारा अनूदित सेलेक्टेड पोएम्स ऑफ बसंत मुदुली, कृष्ण कुमार महान्ति द्वारा संपादित चिह्न चालीसा (जिसमें पूर्व पुरस्कार विजेताओं की 40 कविताएँ शामिल हैं), कवि की अंग्रेजी कविता-संग्रह विल राइज़ लाइक अ फीनिक्स, और श्वेता राउत की पुस्तक पुष्पवितान शामिल थीं।
सह-सचिव संजय कुमार छुअलसिंह ने मंच संचालन और धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का आरंभ मंगलाचार से हुआ।
दूसरे सत्र में “ओड़िया कविता में वैप्लविक स्वर और बसंत मुदुली” विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. शत्रुघ्न पाण्डव ने की। वक्ताओं में डॉ. अभिराम बिस्वाल, डॉ. बेणुधर पाढ़ी और डॉ. फणीन्द्र भूषण नंदा शामिल थे।
समापन सत्र में बसंत मुदुली स्मृति पुरस्कार प्राप्त कवियों का काव्यपाठ हुआ। इसे वरिष्ठ लेखक देबदास छोटराय ने संचालित किया, जबकि संयोजन विजय मल्ला ने किया। अकादमी से चिन्मय मिश्र तथा स्मृति संसद के अरुण खिलार, अमिताभ खिलार, अभिषेक खिलार, निराकार दास, रजनीकांत महान्ति, किशोर पाणिग्राही और अन्य सदस्य कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोगी रहे।