फकीर मोहन साहित्य परिषद की ओर से डॉ. श्रीकांत चरण पात्र की आत्मकथा का लोकार्पण
बालेश्वर, 17 नवम्बर (कृष्ण कुमार मोहंती):
प्रख्यात साहित्यिक विद्वान डॉ. श्रीकांत चरण पात्र की आत्मकथा ‘सुवर्णरेखा कूले मो जीवन: किते कथा किते व्यथा’ का लोकार्पण फकीर मोहन साहित्य परिषद द्वारा कवितीर्थ शांतिकानन में आयोजित एक विशेष समारोह में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता परिषद के अध्यक्ष डॉ. सुबास चंद्र पात्र ने की।
मुख्य अतिथि डॉ. देवाशीष पात्र ने ओड़िया गद्य लेखन में बालेश्वर की विशिष्ट पहचान को रेखांकित किया और इस क्षेत्र में डॉ. पात्र के उत्कृष्ट योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक लेखक के आजीवन अनुभवों, लोगों, चरित्रों और कहानियों से अर्जित अनमोल अंतर्दृष्टियों को संजोए हुए है।
अतिथि वक्ता और समीक्षक डॉ. राधागोविंद कोइला ने कहा कि जो व्यक्ति अपने दुखों से ऊपर उठकर दूसरों की भलाई के लिए स्वयं को समर्पित करता है, वही जीवन में ईश्वर को अनुभव कर सकता है। डॉ. पात्र ने जीवन के संघर्षों को आत्मसात कर इस आत्मकथा में उसे एक समृद्ध रूप में प्रस्तुत किया है।
प्रकाशक डॉ. कालिपद पांडा ने पुस्तक के प्रकाशन के दौरान आई चुनौतियों को साझा किया और बताया कि कठिनाइयों के बावजूद पुस्तक को पाठकों तक पहुँचाना उनके लिए बड़ी संतुष्टि का विषय है।
लेखक के वक्तव्य में डॉ. पात्र ने अपनी स्मृतियों को याद करते हुए बताया कि सुवर्णरेखा नदी ने क्षेत्र के जीवन, संस्कृति और पहचान को किस तरह गढ़ा है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि कभी प्राणवान रही यह नदी आज मुरझा रही है, और कहा कि यह पुस्तक भविष्य की पीढ़ियों के लिए उसके प्रभाव को दर्ज करने का एक प्रयास है।
लेखक और दीर्घकालीन मित्र सूर्या नंदी, जो पचास वर्ष पुरानी एक प्रतिष्ठित पत्रिका के संपादक हैं, ने डॉ. पात्र को बंगाली और ओड़िया साहित्य के बीच संवाद का सेतु बताया और अपनी लंबी मैत्री की स्मृतियों को साझा किया।
कार्यक्रम में इससे पहले संपादक डॉ. रत्नाकर सिंह ने स्वागत भाषण दिया और राजेश गिरि ने अतिथियों को मंच पर आमंत्रित किया। अंत में कल्याणी नंदा ने सभी अतिथियों और उपस्थित जनों को धन्यवाद दिया।