फकीर मोहन विश्वविद्यालय में आरंभ हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'पत्थर से कहानी तक'

May 29, 2025 - 18:09
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फकीर मोहन विश्वविद्यालय में आरंभ हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'पत्थर से कहानी तक'

बालेश्वर, 29 मई (कृष्ण कुमार महांति) — फकीर मोहन विश्वविद्यालय के इतिहास एवं पुरातत्व विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी "पत्थर से कहानी तक: प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक विरासत की दृष्टिकोण" का शुभारंभ आज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संतोष कुमार त्रिपाठी की अध्यक्षता में हुआ।

इस संगोष्ठी का उद्घाटन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (अमरकंटक) के कुलपति प्रोफेसर ब्योमकेश त्रिपाठी ने किया। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने भारत और ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में अंतर्निहित आख्यानों को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने विरासत के आधुनिक पुनर्निर्माण, संरक्षण, जन-जागरूकता, बहुविषयक अनुसंधान तथा अकादमिक सहयोग के महत्व को विस्तार से रेखांकित किया।

मुख्य वक्ता के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), भुवनेश्वर के उत्खनन शाखा–4 के वरिष्ठ पुरातत्वविद् डॉ. जीवन कुमार पटनायक ने भारत की पुरातात्विक संपदा पर गहन प्रस्तुति दी। उन्होंने एएसआई के कार्यकलापों, संबंधित विरासत कानूनों तथा प्रत्यक्ष धरोहर के संरक्षण से जुड़ी समसामयिक चुनौतियों का विश्लेषण किया।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रोफेसर संतोष कुमार त्रिपाठी ने ओडिशा और भारत की दृश्य और अदृश्य सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने ऐतिहासिक आख्यानों के सटीक दस्तावेजीकरण तथा विरासत की रक्षा को सामूहिक जिम्मेदारी बताया।

स्नातकोत्तर परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर भास्कर बेहेरा ने विश्वविद्यालय की विरासत संरक्षण में भूमिका पर प्रकाश डाला और ऐसे शैक्षणिक आयोजन की महत्ता को रेखांकित किया।

कार्यक्रम संयोजक डॉ. पवित्र मोहन नायक ने अतिथियों का स्वागत एवं परिचय प्रस्तुत किया। सह-संयोजक डॉ. शिक्षाश्री राय ने संगोष्ठी के उद्देश्य, शैक्षणिक प्रासंगिकता एवं प्रमुख विषयवस्तु का परिचय दिया।

संगोष्ठी में विविध विषयों पर अकादमिक विमर्श संचालित हो रहा है, जिनमें प्राचीन विरासत, पुरातत्व, प्रतिमाशास्त्र, वास्तुकला, देशज कला, भाषायी परंपराएँ, मध्यकालीन सामाजिक रीतियाँ, धार्मिक आख्यान, सामंती संरचनाएँ तथा पांडुलिपि संस्कृति शामिल हैं। इसके साथ-साथ, औपनिवेशिक प्रभावों से युक्त आधुनिक विरासत, स्वतंत्रता-उत्तर कहानियाँ, कला की प्रगतिशील धारा, प्रवासी विमर्श और राष्ट्रवाद, मौखिक परंपराएँ, वैश्वीकरण का प्रभाव, अभिलेखागार की भूमिका, आपदा एवं संघर्ष के बाद की धरोहर, तथा डिजिटल और आभासी विरासत की सुरक्षा एवं संरक्षण जैसे आधुनिक संदर्भों पर भी गहन चर्चा की जा रही है।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. राजश्री दत्ता ने किया और डॉ. आकाश मल्लिक ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत कर उद्घाटन सत्र का समापन किया।