'ओड़िया भाषा विकास आंदोलन' (OBBA) के तत्वावधान में ‘इक्कीसवीं सदी की नारी और साहित्य’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित
बालेश्वर, 6 नवम्बर (कृष्ण कुमार महांती): इक्कीसवीं सदी की नारी अब नाजुक बेल नहीं रही। वह अब पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है, जैसे दो पेड़ एक साथ बढ़ते हुए एक ही प्रकाश साझा कर रहे हों। साहित्य के क्षेत्र में भी महिलाओं ने भारत और विश्व स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। ओड़िया भाषा विकास आंदोलन (OBBA) द्वारा आयोजित “इक्कीसवीं सदी की नारी और साहित्य” शीर्षक संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि आज के वैश्वीकरण के युग में सृजनशील मस्तिष्कों को संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठना होगा। आपसी प्रेरणा और सहयोग के माध्यम से ओड़िया साहित्य को विश्व मंच पर अधिक सशक्त रूप से स्थापित किया जा सकता है।
इस संगोष्ठी की अध्यक्षता OBBA की वरिष्ठ सदस्या एवं साहित्यकार अरुणा राय ने की। कार्यक्रम में प्रख्यात कवयित्रियाँ एवं लेखिकाएँ यशोधरा दास, प्रतिमा पांडा, गीतांजलि सतपथी और कल्याणी नंदा वक्ता के रूप में उपस्थित थीं। उन्होंने भारत की विशिष्ट महिला साहित्यकारों और रचनाशील महिलाओं के योगदान पर विस्तार से चर्चा की।
कवयित्री ज्योत्स्ना राय ने मंच संचालन किया, जबकि संयुक्त सचिव शांतिलता पांडा ने संपादकीय टिप्पणी प्रस्तुत की। महासचिव डॉ. लक्ष्मीकांत त्रिपाठी ने समापन वक्तव्य देते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।
अन्य उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में डॉ. हेममाला दाश, शरद कुमार महापात्र, डॉ. रमाकांत बेहरा, हेमेन्द्र महापात्र, निबारन जेना, तपन राय, दीपक बोस, कविता जेना, शांति बिशी, रमाकांत महांती, जुमरनाथ पात्र, पुष्पलता चक्रवर्ती और विद्याधर साहू सहित अनेक साहित्यकार और बुद्धिजीवी शामिल थे।